
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति और सरकारी कर्मचारियों के पारिवारिक संपत्ति खुलासों से जुड़े गंभीर मामलों पर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए शासन और आयकर विभाग दोनों को व्यापक कार्रवाई की दिशा में ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। यह पूरा मामला जल निगम के कुछ अधिकारियों के खिलाफ चल रही आय से अधिक संपत्ति की जांच से जुड़ा है, जिसकी सुनवाई चार अलग-अलग याचिकाओं के माध्यम से एक साथ की जा रही है। इनमें दो जनहित याचिकाएं अनिल चंद्र बलूनी और जाहिद अली ने दायर की हैं, जबकि अखिलेश बहुगुणा और सुजीत कुमार विकास ने अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत बताते हुए इन्हें कोर्ट में चुनौती दी है।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट कर दिया कि सरकारी कर्मचारियों द्वारा संपत्ति का खुलासा अधूरा छोड़ देने या ‘परिजन आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं’ जैसे तर्क देकर बच निकलने का दौर अब समाप्त होगा। अदालत ने उत्तराखंड सरकारी सेवक आचरण नियमावली, 2002 का हवाला देते हुए साफ कहा कि ‘परिवार’ की परिभाषा में सिर्फ जीवनसाथी ही नहीं, बल्कि पुत्र, सौतेला पुत्र, अविवाहित पुत्री, सौतेली अविवाहित पुत्री, आश्रित पति/पत्नी और रक्त या विवाह संबंध से आश्रित अन्य सदस्य भी शामिल हैं। इसलिए संपत्ति विवरण जमा करते समय इन सभी की जानकारी ईमानदारी और पूर्णता के साथ देना अनिवार्य है।
अदालत ने इस बात पर भी चिंता जताई कि कई कर्मचारी परिजनों की संपत्ति छुपाने का प्रयास करते हैं और “वे स्वावलंबी हैं” कहकर नियमों की अनदेखी कर देते हैं, जबकि नियमावली में ऐसी किसी छूट का उल्लेख ही नहीं है। इसी आधार पर कोर्ट ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि निगमों और अन्य सेवाओं के नियम भी इसी मानक के अनुरूप संशोधित हों और पूरी पारदर्शिता के साथ लागू किए जाएं।
खण्डपीठ ने राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि परिवार की परिभाषा और संपत्ति खुलासे से संबंधित सभी नियमों को दो सप्ताह के भीतर स्पष्ट रूप से संकलित कर गजट में प्रकाशित कराया जाए। साथ ही, इस पूरी प्रक्रिया का अनुपालन रिपोर्ट 22 दिसंबर 2025 तक कोर्ट में प्रस्तुत करनी होगी। कोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इन दिशा-निर्देशों को ‘पालन शीर्षक’ के रूप में दर्ज करें, ताकि आगे चलकर इस मामले की निरंतर निगरानी हो सके। मुख्य सचिव को फिलहाल व्यक्तिगत पेशी से छूट दी गई है, लेकिन अदालत ने यह भी साफ कहा कि निर्धारित समय में नियमों का अनुपालन न होने पर व्यक्तिगत जवाबदेही तय की जाएगी।
इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को यह भी निर्देश दिया कि दोनों PIL की प्रतियां आयकर विभाग के अधिवक्ता को तुरंत उपलब्ध कराई जाएं। आयकर विभाग को निर्देश दिया गया है कि आरोपी अधिकारियों, उनकी फर्मों और परिवार के सदस्यों की संपत्ति घोषणाओं तथा आयकर रिटर्न का फोरेंसिक ऑडिट तैयार किया जाए। विभाग को दो सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करनी होगी। कोर्ट ने यहां तक स्पष्ट किया कि यदि आवश्यकता पड़े, तो झारखंड से देहरादून तक किसी भी स्थान से रिकॉर्ड मंगाने में कोई बाधा नहीं होगी।
अदालत ने आदेश दिया कि दोनों जनहित याचिकाओं की अनुपालन रिपोर्ट अगली सुनवाई की तारीख पर कॉज लिस्ट में सबसे ऊपर रखी जाए, ताकि किसी भी प्रकार की देरी की गुंजाइश न बचे। सुनवाई के दौरान मुख्य सचिव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत के समक्ष उपस्थित थे।

